Vidhyarthi - Jitender Dahiya Halalpuria

सुख दुःख रूपी प्रश्नपत्र है मैं भी एक परीक्षार्थी हूँ..
जीवन मानो एक पाठशाला जिसका मैं विद्यार्थी हूँ..

नाम अलग हो आज भले पर कुछ कौरव कुछ पांडव है..
हर दिन है महाभारत सा और हर दिन युद्ध सा तांडव है..
अपनों पर बाण चलाता अर्जुन विचलित आज नहीं होता..
रिश्तों को शिखंडी ढाल बनाकर खुद पर वार नहीं होता..

एक रथ रूपी गर घर मेरा उसका मैं सारथी हूँ
जीवन मानो एक पाठशाला जिसका मैं विद्यार्थी हूँ..

प्रकृति से दूर जा रहे ये पकड़ी राह निराली है
दो गमले रखकर खुश होते देखो कितनी हरयाली है
अंधी दौड़ लगी पैसे की ना वक़्त पास में होता है..
पापा कब आएंगे बच्चा राह देख कर सोता है..

पैसा कम पास सही लेकिन वक़्त का मैं लाभार्थी हूँ..
जीवन मानो एक पाठशाला जिसका मैं विद्यार्थी हूँ..

बहुत पढ़ा ना खत्म हुआ ये विषय बड़ा ही व्यापक है
अध्याय हर रोज नया है रोज नया अध्यापक है..
बस्ता मेरा कुछ उम्मीदों कुछ सपनो से भारी है
बस सारी पूरी कर पाऊँ जो भी जिम्मेदारी है

शिक्षा एक बहती धारा और मैं एक प्यासा शिक्षार्थी हूँ..
जीवन मानो एक पाठशाला जिसका मैं विद्यार्थी हूँ ..

कहीं चढ़ता चढावा लाखों का अपनी मन्नत पाने को..
कोई लाखों लाश बिछा देता है खुद जन्नत में जाने को..
कोई बाकी पशुओं को खाकर कहता गाय हमारी माता है
राम को पूजूँपढूं नमाज़ या ईसा मसीह विधाता है..

कोई सच्चा ज्ञान मुझे दे दे मैं हाथ फैलाये भिक्षार्थी हूँ..
जीवन मानो एक पाठशाला जिसका मैं विद्यार्थी हूँ ..


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