Kutta - Kavita by Jitender Dahiya Halalpuriya

एक दिन एक कुत्ता इसा वरदान पा गया
अपने मन की सारी इंसान तै बतला गया....

बोल्या जाड्या का टैम था जिब मैं धरती पै आया था...
याद है तमने इन्ट जचा कै माहरा घर बनाया था...
जाड़े तै बचान ताहि माहरे निचे पराल बिछाया था...

याद है मेरे छोटे से के तमने खूब लाड लड़ाए थे...
किसे नै टाइगर किसे नै टोमी किसे नै मोती कहके खिलाये थे...

माई माई लौटा जीवे थारा झोटा...
न्यू मांग मांग कै पूरा करया था माहरे खाणे का कोटा...

छोटा सा बीमार होया जिब तमने दवाई लगाके बचाया था...
क्यूकर भूलूँ तमने अपने हिस्से का भी दूध माहरे तै प्याया था...

बचपन तै तने पाल्या हूँ मैं भी उसका फर्ज निभाऊँ सुं...
थारे घर की रखवाली मै सारी रात जाग कै बिताऊँ सुं...

आज काल के लोग तै वफादारी नै भी गलत बतावे है...
वफादार तै कुत्ते होया करे न्यू कहके चिड़ावे है...

माहरी वफादारी मै कित कमी रही इब सबने विदेशी कुत्ते भावे है...
किते रोड पै किते गली मै माहरे बालक भूखे बिरडावे है...

इब भी स कुछ इसे आदमी जो माहरे तै लगावे दिखावे स...
विदेशिया तै बत्ती जो इब भी देशी नै चाहवे स..
कुत्ता भी न्यू भी बोल्या इसी सोच का और कोए इंसान ना फेट्या...
हलालपुर गाँव मै जितेन्द्र नाम का जीसा यो दहिया देखया..


दुनिया का पहला हरियाणवी ऑनलाइन रेडियो स्टेशन - अपणी बोली अपणे गीत

टिप्पणियाँ