पापा - Jitender Dahiya Halalpuriya

ना धन मिले व्यापर मिले ना कोई ऊँचा घर बार मिले
मेरी एक ही मांग विधाता से पापा यही हर बार मिले..

पहली बार यूँ पापा ने चलना मुझे सिखाया था..
कभी ऊँगली पकड़ा दी अपनी कभी दूर से पास बुलाया था..
सुबह सुबह पापा जाते आँखों में आँसू आते थे..
चीज लाऊंगा लिए तुम्हारे कहकर चुप करते थे..
जब ऑफिस से आते मैं पापा पापा चिल्लाता था..
मेरे लिए क्या लाये हो दरवाजे पे अड़ जाता था..
भर लेते वो बाहों में मैं गोदी में चढ़ जाता था..
जो भी लाते पापा उसका मोल वो मुझसे पाते थे..
एक प्यारी के लिए गाल वो मेरी तरफ बढ़ाते थे..
कभी झुलाते कंधो पर कभी घोडा वो बन जाते थे..
हर बार हो गोद यही हर बार यही दुलार मिले..
मेरी एक ही मांग विधाता से पापा यही हर बार मिले..

जब थोड़ा सा बड़ा हुआ पापा साथ घुमाने लाते थे..
दौड़ साथ में लगवाते और कुएं पे नहलाते थे..
हर गलती पर पापा ने मुझे प्यार से ही समझाया था..
आज भी याद है 3 बार की कब कब हाथ उठाया था..
आज भी पापा जाने कैसे इतनी मेहनत कर पाते है..
सारा दिन करके नौकरी शाम खेत में जाते है..
हर प्रकार की सुख सुविधा पापा ने मुझको दे डाली है ..
खुद सारी उम्र कमाई करके जेब आज भी खाली है..
वो कहते 2 भुझाएँ हमको तुमसे मैं बलवान हूँ..
दोनों बच्चे खुश मेरे मैं सबसे बड़ा धनवान हूँ..
वो कांटो पर भी चल जाए अगर हमको फूल बहार मिले..
मेरी एक ही मांग विधाता से पापा यही हर बार मिले..

जब रखा पैर जवानी में पापा ने एक बात बताई थी..
घर की इज्जत ना खोने देना ये बात मुझे समझाई थी..
वो बोले इस बात के मतलब पर तू गौर जरा फरमाना..
"डूबे तो इतने गहरे पानी में डूबना के
 हाथ उठाने पर भी नज़र ना आये
वरना दूर ही रहना कीचड़ में लेट के मत आना''
जीवन अगर एक कठिन शब्द आप सही सही उच्चारण हो.
कैसे करनी है सेवा माँ बाप की आप ही मेरा उदाहरण हो .
मीठी बोली नरम स्वभाव कोई छलकपट की बात नहीं..
आप ही का प्रतिरूप हूँ मैं अलग मेरे जज़्बात नहीं..
अनजानी राह में राह दिखाते निशान पैरों के बारम्बार मिले.
मेरी एक ही मांग विधाता से पापा यही हर बार मिले..


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