आज फेर मेरा सीना छलनी होग्या,
हे कृष्ण मुरारी के तू बी सोग्या।
इब तो हर पल द्रोपदी का हो स चीर हरण,
इब तो बेटी जामता हाणी माँ बी लागी डरण।
इब माँ किस प करे भरोसा इस कलजुग में,
सोचे स क्यूँ ना मरवा दूँ बेटी नै कुख में।
माँ का दर्द, बेटी की चिंता, बाहण की सोच,
हे प्रभु दिन रात लेवे स कालजा नोच।
किसने सुनाऊँ अपना दर्द कोय सुनदा कोणी,
हे प्रभु तू बी मेरी राह के कांडे चुगदा कोणी।
"सुलक्षणा" कर रही अर्ज हाथ जोड़ के प्रभु,
इब तो आ जाओ बैकुंठ छोड़ के प्रभु।
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