के खून का पानी का हो लिया जो रीत आपणी भूल रहे।

के खून का पानी का हो लिया जो रीत आपणी भूल रहे।
संस्कृति सभ्यता धर्म संस्कार म्हारे आज फांक धूल रहे।।

चैत महीने त लाग्या करदा म्हारा नया साल।
इब जनवरी त मणावें देखो चाल रे भेड़चाल।
महीना के नाम बी मौसम अनुसार होया करदे।
कातक बातक पौ जाड्डा छौ साची रोया करदे।
ना फागण का रंग चाह रहा ना सामण की झूल झूल रहे।।

संकरात नै छोड़ वैलेंटाइन डे किस डे मनावण लागे।
तुलसी पूजा भूलगे क्रिसमस ट्री आज सजावण लागे।
पायां के हाथ लाना दूर छोड़ दिए नमस्ते और राम राम।
माँ बाप दादा दादी बडाँ त बी हाय हेल्लो में चलावें काम।
ओछी बात सारी हाम आज स्टैण्डर्ड के नाम प कर कबूल रहे।।

साली साढ़ू आज प्यारे होगे बाहण भाई दुश्मन दिखण लागे।
जिन माँ बाप नै जन्म दिया उन नै घरां राखण म्ह झिखण लागे।
कदे काण मुहकाण प बी माँ बाप बेटी के घरां ना जाया करदे।
आज महीना महीना पड़ें रहं कदे कुछ ना पीया खाया करदे।
छोड़ आपणे संस्कारां नै हाम फैशन के घमंड म्ह फूल रहे।।

साँग छोड़ रागणी सुनी इब रागणी छोड़ गंदे गाने सब सुने सं।
बदल गए लोग कितने देख देख गुरु रणबीर सिंह सर नै धुने सं।
किसा पाटया चाला बरत बार त्यौहार बी आज दो दो बणावें सं।
सर उघाड़े बहु हांडे गात दिखाती छोरी देख बड़े बूढ़े शर्मावें सं।

पढ़ पढ़ "सुलक्षणा" के छंद दुनिया के घट के पर्दे खुल रहे।।

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