आ के बचा ले मेरी जान

के सोचे स ठा ले हथियार।
मेरी घेटी प धरी तलवार।
तू क्यूँ लावे स घनी वार।
आ के बचा ले मेरी जान।।

खुद भगवान नै पूजी मैं जाने दुनिया सारी।
मेरी पूजा करे त टल ज्यां सं विपद भारी।
कृष्ण नै बन ग्वाला चराई थी।
बंसी की धुन खूब सुनाई थी।
उसकी दया त माता कुहाई थी।
कृष्ण नै खूब बढ़ाया आदर मान।।

दुनिया आले अमृत के बराबर मेरा दूध घी बतावें।
मेरे मूत त देशी वैद्य हारी बीमारी की दवाई बनावें।
गोबर त लीपें आँगन।
गोसे पाथ बनावे ईंधन।
फेर बी लागरया स झिखण।
तेरा के राह होगा ओ मुर्ख इंसान।।

होये बावले तैंतीस कोटि देवी देवता करें मेरे में वास।
माँ कहो मन्ने और मरती देखो थम थारा होवेगा नाश।
सरेआम कसाई कत्ल कर दे।
आरा घेटी प आँखा आगे धर दे।
थम कुछ बोलों ना डरदे।
उस हर नै क्यूकर दिखाओगे अपनी शान।।

भूखी तिसाई भटकती फिराँ ना लेता कोय संभाल।
एक एक हाड़ न्यारा न्यारा दिखे लटक गयी खाल।
नालाँ त पानी पीना पड़ै।
जो कई कई महीना त सड़ै।
""सुलक्षणा"" साची बात घड़ै।

मेरे दुःख दर्द नै गयी या पिछाण।।

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