कितने बदल गए मर्द माणस यो बखत किसा खोटा आया र

कितने बदल गए मर्द माणस यो बखत किसा खोटा आया र।
देख के रंग ढंग इनके मेरी आँख्यां आगे घोर अँधेरा छाया र।।

के खान पान के पहरावा बदल गयी इनकी चाल ढ़ाल।
बीर बाणिया केसी होई इनकी अदा नजाकत बोल चाल।
आचार विचार बदल गए ख्याल कोय कोय समझदार पाया र।।

देशी खाना छोड़ दिया इन नै अंडे मीट तली होइ चीज भावें सं।
अखाड़ां में जावें कोणी पौडर खा खा के ये देही आज बनावें सं।
दारू पीवें सिगरेट के छल्ले उड़ावें सं नशे पतां ने गात खाया र।।

धोती कुरता खंडका छोड़ा, छोड़ा कुरता पजामा पैंट शर्ट पहरी।
फेर कोट पैंट, जीन्स प आये इब पहरें सं बरमूडा और कैपरी।
पौंचा आला पजामा पहरें शहरी देख के इन नै फुकगी काया र।।

मूँछ दाढ़ी कटवा के छोरियाँ ज्यूँ बाल बढ़ा के ये रबड़ घाल्यं।
देख के आज्या हांसी भतेरे छोरियाँ ज्यूँ घने मटकते चाल्यं।
"सुलक्षणा" ज्यूँ स्याही डाल्यं सारा भेद कह सुनाया र।।

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