तू संत बना फिरे स संत कौन हो स ल्या तन्ने बता दूँ

तू संत बना फिरे स संत कौन हो स ल्या तन्ने बता दूँ।
एक ब मन्ने फेट ज्या तन्ने सच का आइना दिखा दूँ।।

मन कर्म बचण त जो उस ईश्वर नै ध्यावे वो संत हो स।
जगत म्ह मोह माया त जो खुद नै बचावे वो संत हो स।
सत की राह प चाल्य अर औरां नै चलावे वो संत हो स।
कहता हो तो तन्ने साच्चै संता त आड़े मिलवा दूँ।।

साच्चै संता का आपणी भूख और नींद प पूरा बश हो स।
मुँह की बाणी पार होज्या इसा साच्चै संता का जश हो स।
साच्चै संता के मुँह त लिकड़े बोलां में सत् का रस हो स।
चाल मेरी गेल्लां रामपाल तन्ने संता की बाणी सुना दूँ।।

सादा बाणा पहरें संत और सादा ऐ खाना वे रोज खावें।
माँग के ल्यावें पहलां संत फेर आपणे हाथाँ रसोई बनावें।
धरती प बिछा आसन बैठे रहं धरती प सो कै रात बितावें।
तू संता के लोवे धोरे भी कोन्या आज्या तेरा बहम मिटा दूँ।।

भोले भाले माणसा नै तू मोहिणी विद्या त वश में कर रा स।
धन दौलत नाम शौहरत कै पाछे तूं पागल होया फैर रा स।
तेरा आ लिया आखरी टेम बावले पाप का घड़ा भर रा स।

कहता हो तो ""सुलक्षणा"" प तेरा कच्चा चिट्ठा लिखवा दूँ।।

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