हे पणमेशर मेरे प इतनी सी तू मैहर कर दे

हे पणमेशर मेरे प इतनी सी तू मैहर कर दे।
हटके बालक बना मन्ने और माटी का घर दे।

ना किसे बात का डर था ना क्याहें की चिंता,
बालक था तो राजी था इब हटके मेट फ़िक्र दे।

वो चुलबुलापण वा मासूमियत ना रही इब,
हटके तू बालकपण आला अल्हड़पण भर दे।

वा कागज की कश्ती, वो मिंह का पानी दे,
जिसकी मंजल हो बचपन हे प्रभु वो सफ़र दे।

ढब्बीयाँ खेला करता खेल न्यारे न्यारे रोज,
वो हे खेल पकड़म पकड़ाई, लोहा लम्बर दे।

पल में लड़ना पल में आपे मान जाना प्रभु जी,
मन में ना रहवे इर्ष्या द्वेष कर इसा असर दे।

कित का जवान होया जी नै जंजाल होग्या,
बना के हटके बालक फेर मैहर की नजर दे।

और कुछ नहीं दे सकता तो हे पणमेशर,

"सुलक्षणा"  के ना आवे याद बालकपण यु वर दे।

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