राजनीति में नेता धोरे काम ना रह रा जमीर का

राजनीति में नेता धोरे काम ना रह रा जमीर का।
कुछ ना दिखे जब लागे लपेटा नोटां की जंजीर का।।

राजनीति में आये पाछे आदमी इंसानियत ने त्याग ज्या।
लाज शर्म आंख्यां में त सौ सौ कोसाँ दूर भाग ज्या।
छल कपट बेईमानी आदमी दिन रात करन लाग ज्या।
सत्ता सुख का मोह उसके जी पापी में जाग ज्या।
लाग ज्या चस्का सत्ता की खीर का।।

राजनीति आल्याँ ने खुद को भगवान मान लिया।
जनता है सताणी यु मन में उन नै ठान लिया।
पांच साल के राजा होज्याँ न्यू उन नै जान लिया।
मीठा मीठा बोल के करवा अपना गुणगान लिया।
पहचान लिया कोय ना होता पक्का लकीर का।।

राजनीति और राजनेता दोनों की हालत बिगड़गी।
झूठे वादे करे इन ने जनता न्यू चक्कर में पड़गी।
सत्ता की गर्मी राजनेता के सर में चढ़गी।
अनाप शनाप बोलें ये जबान घनी लिकड़गी।
झड़गी टौर इनकी ये काम करे ना धीर का।।

कर घोटाले घर भर लें नाम ना लेवें काम करवावन का।
हर किसे के ना होता कालजा राजनीति में जावन का।
ले के सारी दुनिया की बद्दुआ कोरा पाप कमावन का।
राजनीति में ना जाइयो कोय मेरा काम समझावन का।

चलावन का खटका ""सुलक्षणा"" के कलम की शमशीर का।।

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