भाइयों सपने में तो चाला होग्या,
मेरा ढंग ब्याहले आला होग्या।
छोरी छिंडी गावें गीत न्यारे न्यारे,
पीवें खावें थे मेरे सारे यारे प्यारे।
दो दो पैग बूढ़ाँ नै बी लगा लिये,
डीजे प आ के चाद्दरे बगा दिये।
फेर दो चार जणे मन्ने डीजे प लेगे,
कैम्पा कोला कह के दारू के पैग देगे।
दारू के नशे में डीजे प मैं खूब नाच्या,
भाभियाँ के संग गिरकाया घना ऐ माच्या।
फेर अगले दिन सवेरे चढ़गी बरात,
एक ढब्बी एक जीजा बैठे मेरे साथ।
उनकी परश में बैठे थे कि चाय आगी,
सारी बारात बैठ के चाय पीवन लागी।
चाय पीते ऐ बारोठी का बुलावा आग्या भाई,
परश के बाहर खड़ी थी घोड़ी सजी सजाई।
जब घर के बारणे पहुँचे हाम गिरकायी साली,
घनी ऐ खड़ी थी औड़े कोय भूरी कोय काली।
फेर के था भाई मैं फेरां प बिठा दिया,
बला के बहु मेरी, हाथ में हाथ पकड़ा दिया।
फेरे होये पाछे हाम उन नै कर दिए विदा,
गाड़ी में देखी वा तो मैं उस प मर मिटा।
घरां पहुँचते ही बड़ी बूढ़ी रिवाज निभान लागी,
मेरी बेबे भाभी उसके संग हँस बतलान लागी।
अगले दिन तड़के ऐ म्हारे ताहीं देई धाम धुका दिए,
साँझ ऐ राम चोबरे में पलंग बिछा फूल सजा दिए।
रात नै चोबरे में मेरी भाभी उसने छोड़न आयी,
वा आपने हाथ में मेरी खातर लोटा दूध का लायी।
जब बैठ पलंग प उसका घुंघट ठावन लाग्या,
मुँह प बूंद सी लागी मी बरसता आवन लाग्या।
आँख खोल देख्या बाबू पानी के छींटे मारे था,
खाट की जड़ में खड़ा मेरा नाम पुकारे था।
बाबु नै ऐन टेम प ठा दिया सपना पूरा ना होण दिया,
इसी मारी चोट मेरे, किसे के स्याहमी ना रोण दिया।
राम जाने फेर कद इसा सपना हट के आवे मन्ने,
जिसमें ""सुलक्षणा"" जीसी छैल बहु पावे मन्ने।
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