ऋषि मुनियाँ का देश मेरा पाप गर्त में जा लिया

ऋषि मुनियाँ का देश मेरा पाप गर्त में जा लिया।
दिखे लागे स इस दुनिया का अंत समय आ लिया।।

बाप बेटी की, भाई बाहण की इज्जत लुट लेवें वा बेचारी जीती जागती लाश रहज्या।
धन दौलत खातर बेटा बाप की, भाई भाई की जान ले ले भला किसका विश्वास रहज्या।
कुटुंब कबीला रिश्तेदार जब मारण प आवें भला बचाण की किस त आश रहज्या।
किसा बखत आग्या आज जो काटे जड़ नै वो हे मानस दुनिया में सबका खास रहज्या।
आज आपणे हाथां मानस जूणी के ला बट्टा दिया।।

घरां बहु तड़पती रहवे वे बाहर जा जा के खूब मौज लेवें।
घरां बालक भूखे मरें जाँ वे शबाब शराब की चुस्की रोज लेवें।
भर कै कोली बीर परायी की, उस प खाली कर अपनी गोझ देवें।
बालक कुनबा काल मरदा आज मरज्या वे हरगिज ना खोज लेवें।
इसे ऐ मानसा नै सर म्हारा आज झुका दिया।।

कुलछणी बीर घनी होगी जो रोज लाज शर्म मर्यादा की लछमण रेखा नै पार करें सं।
कोय के कर ले इसी बिरां का जो आपणी झूठी शान खातर तन का व्यापार करें सं।
मन त आज किसी ने चाहती कोन्या बस धन दौलत रंग रूप देख के झूठा प्यार करें सं।
घर के रहते ना घाट के रहते वे मानस जो त्रिया चरित्र में आ के इनका ऐतबार करें सं।
खोटी बिरां नै जीवन नरक बना दिया।।

आज गुरु शिष्य का पवित्र रिश्ता बी दिन ब दिन मैला होता जावे स।
कदे गुरु त कदे शिष्य आपना धर्म भूल के इस नाते के बट्टा लावे स।
गुण और संस्कार की बात करण आला ऐ आज राह त भटका पावे स।
इतनी खोल के कोय ना बात बताता जितनी ""सुलक्षणा"" थमने बतावे स।

समाज का असली चेहरा थारे ताहीं दिखा दिया।।

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