किसा बखत आग्या लोग आपणे रित रिवाज संस्कार भूलगे

किसा बखत आग्या लोग आपणे रित रिवाज संस्कार भूलगे।
लोग छोटां बड़ां के गेल्लां किसा करना चाहिए ब्योहार भूलगे।।

आजकाल की बहु लाज शर्म काण कायदा सब कुछ भूल गयी।
पढ़ण लिखण के कारण संस्कार छोड़ दिए घमंड में फूल गयी।
ससुर जेठ के आगे सर फुले हांडे न्यू इज्जत पायां में रुल गयी।
पहलां औल्हा पर्दा क्यूँ होया करदा लोग करना विचार भूलगे।।

ब्रह्म महूर्त में उठ के नहा धो के राम का नाम लेना छोड़ दिया।
बाबू बेटा कट्ठे बैठ दारु पीवें शर्म लाज का दायरा तोड़ दिया।
पाँ दबाना, हाथ जोड़ना छोड़ा बस हेल्लो त नाता जोड़ दिया।
रिश्तां की कद्र, बड़ां का आदर, छोटां नै करना प्यार भूलगे।।

आज छोरी के घर का माँ बाप खावन लागे न्यू डूबाढ़ेरी होगी।
गऊ, कन्या के लात मारें लोग भाइयों पाप की हद भतेरी होगी।
औलाद ने माँ बाप बी बाँट दिए वे कहं बाप तेरा माँ मेरी होगी।
गऊ, कुत्तां की रोटी काढ़ना आजकाल लोग समझदार भूलगे।।

गुरु शिष्य भूलगे अपने अपने धर्म नै पाप की राही प चाल पड़े।
देख नयी नयी रित रिवाज बूढ़ां के कालजे आज हाल पड़े।
इस फैशन की चलाई में रित रिवाज संस्कारां के अकाल पड़े।

आज के ज़माने में ""सुलक्षणा"" हल चलाना जमींदार भूलगे।।

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