टूटी सी झोपड़ी में बैठा था वो माथे धर के हाथ

टूटी सी झोपड़ी में बैठा था वो माथे धर के हाथ।
होये रोना आग्या जब देखे मन्ने हाली के हालात।।


धोरे सी जा के बुझया मन्ने उसका हाल तमाम।
या हालत क्यूकर होयी दिन रात करे स काम।
खुल के बता मैं बुझना चाहूँ सुं तेरे दिल का दर्द सारा।
बेरा तो लागे क्यूँ दुःख पा रहा स अन्नदाता म्हारा।
तेरा सारा दुःख बँटवा लूँ झूठी ना करूँ बात।।


जब सुनी हाली की बात आँख त टप टप आँसू पड़न लागे।
बिना जाने हकीकत हाली की लोग सौ सौ बात घड़न लागे।
महंगा बीज महंगा खाद होगी महंगी दवाई न्यू दुखी स हाली।
कदे सुखा पड़े राम ना बरसे महंगी पड़े सिंचाई न्यू दुखी स हाली।
कदे मी बरसे इतना सारी फसल होज्या बर्बाद।।


कदे जीरी गलज्या गेहूँ होवें कोन्या कदे बाड़ी का फूल खिलता कोन्या।
अर टेम प कदे आच्छी फसल होज्या तो आच्छा भाव मिलता कोन्या।
कदे ईंख पड़ज्या छोलण में सहजे सी आवे ना।
कदे बाजरे नै जिनोर खाज्याँ दाने उसमें पावे ना।
कद सी लिया सुख का साँस हाली नै आवे ना याद।।


टोटे के म्ह दिन तोड़े हाली, बालक उसके भूखे पेट सोवें सं।
देख दुसरे बालकां नै हाली के बालक स्कूल जाण नै रोवें सं।
सारे बार त्यौहार बी फीके बीत जावें बेचारे हाली के।
टेम प कोय काम ना आता बखत के मारे हाली के।

बेरा ना ""सुलक्षणा"" कद कटेगी दुखाँ की अँधेरी रात।

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